पितृदोष से मुक्ति के लिए कौवों को ही क्यों खिलाते हैं भोजन?
रामायण और महाभारत काल में भी श्रादध का वर्णन मिलता है ।
मान्यता है के हमारे पूर्वज इस काल के दौरान स्वर्ग से पृथ्वी पर आते है और अपने सम्बन्धियो से पिण्डदान प्राप्त कर के आशिर्वाद देकर वापस लौट जाते है।
ज्योतिष शास्त्र में भी विशेष दोषों के निवारण के लिया इस समय का अपना महत्व है।
शस्त्रों में ३ तरह के ऋण बताये गये है देव ऋण ऋषि ऋण पितृ ऋण इन तीनों ऋणो के बदले कुछ करने के लिया पितृ पक्ष का ये समय सबसे उत्तम होता है ।
पितृपक्ष में हर घरों के छत पर कोओ के लिया खाना डालने की प्रथा है क्या आप जानते है एसा करने से सभी प्रकार के दोष एवम् ऋण से मुक्ति मिल जाते है क्योंकि एसा करके जानेचाहे अनजाने में हम प्रकृति का संरक्षण कर रहे होते है क्योंकि असल में ऋण तो हमपर प्राकृती का ही होता है जिस पंचतत्वों से हमारा शरीर बना होता है । हमारे ऋषियो ने कोवो पर पित्रों के रूप में माना क्योके प्रकृति के सरंक्षण का बोझ इन्हीं पर तो हैं । और भादो महीना में ही मादा कोआँ नये जीव को जन्म देते है और एन्हे पॉस्टिक आहार के जरूरत होते है कोआँ जाति के सरंक्षण के लिये ये काफ़ी आवश्यक है। क्योके ये ही तो पृथ्वी के गंदगी को साफ़ करते है । पीपल और बड़ जैसे जीवनदाययी वृक्षों के बीज इन्ही के अदर बनते है जो एनके बिट द्वारा पनपते है । ईसलिये तो कोओ को शनि का प्रतीक माना हुआ है।
पीपल और बड़ के वृक्ष प्रकृति संरक्षण के लिया महत्वपूर्ण है क्योंकि पीपल एक मात्र पूछा है जो १००%आक्सीजन देता है जो जीवन के लिये सबसे प्राथमिक ज़रूरत है जिसे प्राणवायु कहते है । तात्पर्य यह है कि एन कर्मों द्वारा हम आने वाली पीढ़ी के लिया प्राणवायु के संरक्षण के लिया कोओ को श्राद्धपक्ष में खाना खिला कर अपने ऊपर के प्रकृति ऋण को भी कम करते हैं ।
इस वर्ष १८ वर्षों के बाद केन्या राशि में केतु के साथ सूर्य के रहेंगे और मीन राशि के राहु के दृष्टि भी सूर्या पर रहेंगगी।जिनकी भी जन्मकुंडली में ये योग है वो खीर में केसर मिला कर बनाये और दान करे । अगर आपके कुंडली में पितृ दोष है तो से समय आपके द्वारा श्रधापूर्वक किया गया दान आपके दोषों के बुरे प्रभावों को ख़त्म करेगा ।
कुश और काले तिल द्वारा दक्षिण दिशा में पितरों
को जल डालने से वो तृप्त होते है।
कुछ विशेष तिथि में श्राद्ध करने से कई दोषों का नाश होता है
पंचमी श्राद्ध- जिन पितरो की मृत्यु पंचमी तिथि को हुई हो या अविवाहित स्थिति में हुई है तो उनके लिए पंचमी तिथि का श्राद्ध किया जाता है।
नवमी श्राद्ध - नवमी तिथि को मातृनवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि पर श्राद्ध करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
चतुर्दशी श्राद्ध- इस तिथि उन परिजनों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो
सर्वपितृ अमावस्या- जिन लोगों के मृत्यु के दिन की सही-सही जानकारी न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है।
पितृपक्ष का समय हमारे पूर्वजों के आशीर्वाद द्वारा आने वाली पीढ़ी के लिया प्रकृति संरक्षण के लिया महत्त्वपूर्ण है ।
डॉ मधु प्रिया प्रसाद
(एस्ट्रोलॉजर एंड वस्तु एक्स्पर्ट)